Importance of tree plantation by thakur rahul raghuwanshi
धर्मशास्त्रों में वृक्षारोपण को पुण्यदायी कार्य बताया गया है। इसका कारण यह है कि वृक्ष धरती पर जीवन के लिए बहुत आवश्यक हैं। भारतवर्ष में आदि काल से लोग तुलसी, पीपल, केला, बरगद आदि पेड़-पौधों को पूजते आए हैं। आज विज्ञान सिद्ध कर चुका है कि ये पेड़-पौधे हमारे लिए कितने महत्त्वपूर्ण हैं।
वृक्ष पृथ्वी को हरा-भरा बनाकर रखते हैं। पृथ्वी की हरीतिमा ही इसके आकर्षण का प्रमुख कारण है। जिन स्थानों में पेड़-पौधे पर्याप्त संख्या में होते हैं, वहाँ निवास करना आनंददायी प्रतीत होता है। पेड़ छाया देते हैं। वे पशु-पक्षियों को आश्रय प्रदान करते हैं। पेड़ों पर बंदर, लंगूर, गिलहरी, सर्प, पक्षी आदि कितने ही जंतु बड़े आराम से रहते हैं। ये यात्रियों को सुखद छाया उपलब्ध कराते हैं। इनकी ठंडी छाया में मनुष्य एवं पशु विश्राम कर आनंदित होते हैं।
वृक्ष हमें क्या नहीं देते। फल, फूल, गोंद, रबड़, पत्ते, लकड़ी, जड़ी-बूटी, झाड़, पंखा, चटाई आदि विभिन्न प्रकार की जीवनोपयोगी वस्तुएँ पेड़ों की सौगात होती हैं। ऋषि-मुनि वनों में रहकर अपने जीवन-यापन की सभी आवश्यक वस्तुएँ प्राप्त कर लेते थे। जैसे-जैसे सभ्यता बढ़ी लोग पेड़ों को काटकर उनकी लकड़ी से घर के फ़र्नीचर बनाने लगे। उद्योगों का विकास हुआ तो कागज, दियासलाई, रेल के डिब्बे आदि बनाने के लिए लोगों ने जंगल के जंगल साफ़ कर दिए। इससे जीवनोपयोगी वस्तुओं का अकाल पड़ने लगा। साथ ही साथ पृथ्वी की हरीतिमा भी घटने लगी।
वृक्षों की संख्या घटने के दुष्प्रभावों का वैज्ञानिकों ने बहुत अध्ययन किया है। उन्होंने निष्कर्ष निकाला है कि वृक्षों के घटने से वायु प्रदूषण की मात्रा बढ़ी है। वृक्ष वायु के प्राकृतिक शोधक होते हैं। ये वायु से हानिकारक कार्बन डायऑक्साइड का शोषण कर लाभदायक ऑक्सीजन छोड़ते हैं। ऑक्सीजन ही जीवन है और जीवधारी उसे लेकर ही जीवित रहते हैं। अत: धरती पर वृक्षों की पर्याप्त संख्या का होना बहुत आवश्यक होता है।
वृक्ष वर्षा कराते हैं। ये जहाँ समूहों में होते हैं वहाँ बादलों को आकर्षित करने की क्षमता रखते हैं। वृक्ष मिट्टी को मज़बूती से पकड़े रखते हैं और इसका क्षरण रोकते हैं। ये बाढ़ और अकाल दोनों ही परिस्थितियों को रोकने में सहायक होते हैं। ये मरुभूमि के विस्तार को कम करते हैं। ये वायुमंडल के ताप को अधिक बढ़ने से रोकने में बहुत मदद करते हैं। जहाँ अधिक पेड़-पौधे होते हैं वहाँ गर्मियों में शीतल हवा चलती है।
इसीलिए समझदार लोग अधिक से अधिक संख्या में पेड़ लगाने की बात करते हैं। संतुलित पर्यावरण के लिए किसी बड़े क्षेत्र के एक-तिहाई हिस्से पर वनों का होना आवश्यक माना जाता है। लेकिन वर्तमान समय में वन इस अनुपात में नहीं रह गए। हैं। इसके हानिकारक परिणाम सर्वत्र दृष्टिगोचर हो रहे हैं। अत: वर्तमान समय की आवश्यकता है कि हर कोई वृक्षारोपण करे। एक पेड़ काटा जाए तो तीन पेड़ लगाए जाएँ। मास का एक दिन वृक्षारोपण के लिए समर्पित हो।
इस कार्य में विद्यार्थियों को सहभागी बनाया जाए। अनुर्वर भूमि पर, सड़कों के किनारे, पहाड़ी स्थलों पर, रिहायशी इलाकों में और जहाँ थोड़ा भी रिक्त स्थान हो, पेड़ लगा दिए जाएँ।
पेड़ बचेंगे तो जीव समुदाय बचेगा। पेड़ रहेंगे तो लकड़ी की आवश्यकता की पूर्ति होगी और उद्योगों को कच्चा माल मिलता रहेगा। हमारी आगामी पीढ़ी को पेड़ों के अभाव में कठिनाइयों का सामना नहीं करना पड़ेगा। पेड़ और वन होंगे तो वन्य-जीवन को आश्रय मिलता रहेगा। दुर्लभ वन्य प्राणियों को विलुप्त होने से बचाया जा सकेगा। इसलिए सब लोगों को पेड़ लगाने का संकल्प लेना चाहिए। लोगों को वन महोत्सव और वृक्षारोपण के अभियान में सक्रिय भागीदारी करनी चाहिए। सरकार उन तत्वों से सख्ती से निबटे जो वृक्षों और वनों की अंधाधुंध कटाई में संलिप्त हैं।
Thakur rahul raghuwanshi
वृक्ष पृथ्वी को हरा-भरा बनाकर रखते हैं। पृथ्वी की हरीतिमा ही इसके आकर्षण का प्रमुख कारण है। जिन स्थानों में पेड़-पौधे पर्याप्त संख्या में होते हैं, वहाँ निवास करना आनंददायी प्रतीत होता है। पेड़ छाया देते हैं। वे पशु-पक्षियों को आश्रय प्रदान करते हैं। पेड़ों पर बंदर, लंगूर, गिलहरी, सर्प, पक्षी आदि कितने ही जंतु बड़े आराम से रहते हैं। ये यात्रियों को सुखद छाया उपलब्ध कराते हैं। इनकी ठंडी छाया में मनुष्य एवं पशु विश्राम कर आनंदित होते हैं।
वृक्ष हमें क्या नहीं देते। फल, फूल, गोंद, रबड़, पत्ते, लकड़ी, जड़ी-बूटी, झाड़, पंखा, चटाई आदि विभिन्न प्रकार की जीवनोपयोगी वस्तुएँ पेड़ों की सौगात होती हैं। ऋषि-मुनि वनों में रहकर अपने जीवन-यापन की सभी आवश्यक वस्तुएँ प्राप्त कर लेते थे। जैसे-जैसे सभ्यता बढ़ी लोग पेड़ों को काटकर उनकी लकड़ी से घर के फ़र्नीचर बनाने लगे। उद्योगों का विकास हुआ तो कागज, दियासलाई, रेल के डिब्बे आदि बनाने के लिए लोगों ने जंगल के जंगल साफ़ कर दिए। इससे जीवनोपयोगी वस्तुओं का अकाल पड़ने लगा। साथ ही साथ पृथ्वी की हरीतिमा भी घटने लगी।
वृक्षों की संख्या घटने के दुष्प्रभावों का वैज्ञानिकों ने बहुत अध्ययन किया है। उन्होंने निष्कर्ष निकाला है कि वृक्षों के घटने से वायु प्रदूषण की मात्रा बढ़ी है। वृक्ष वायु के प्राकृतिक शोधक होते हैं। ये वायु से हानिकारक कार्बन डायऑक्साइड का शोषण कर लाभदायक ऑक्सीजन छोड़ते हैं। ऑक्सीजन ही जीवन है और जीवधारी उसे लेकर ही जीवित रहते हैं। अत: धरती पर वृक्षों की पर्याप्त संख्या का होना बहुत आवश्यक होता है।
वृक्ष वर्षा कराते हैं। ये जहाँ समूहों में होते हैं वहाँ बादलों को आकर्षित करने की क्षमता रखते हैं। वृक्ष मिट्टी को मज़बूती से पकड़े रखते हैं और इसका क्षरण रोकते हैं। ये बाढ़ और अकाल दोनों ही परिस्थितियों को रोकने में सहायक होते हैं। ये मरुभूमि के विस्तार को कम करते हैं। ये वायुमंडल के ताप को अधिक बढ़ने से रोकने में बहुत मदद करते हैं। जहाँ अधिक पेड़-पौधे होते हैं वहाँ गर्मियों में शीतल हवा चलती है।
इसीलिए समझदार लोग अधिक से अधिक संख्या में पेड़ लगाने की बात करते हैं। संतुलित पर्यावरण के लिए किसी बड़े क्षेत्र के एक-तिहाई हिस्से पर वनों का होना आवश्यक माना जाता है। लेकिन वर्तमान समय में वन इस अनुपात में नहीं रह गए। हैं। इसके हानिकारक परिणाम सर्वत्र दृष्टिगोचर हो रहे हैं। अत: वर्तमान समय की आवश्यकता है कि हर कोई वृक्षारोपण करे। एक पेड़ काटा जाए तो तीन पेड़ लगाए जाएँ। मास का एक दिन वृक्षारोपण के लिए समर्पित हो।
इस कार्य में विद्यार्थियों को सहभागी बनाया जाए। अनुर्वर भूमि पर, सड़कों के किनारे, पहाड़ी स्थलों पर, रिहायशी इलाकों में और जहाँ थोड़ा भी रिक्त स्थान हो, पेड़ लगा दिए जाएँ।
पेड़ बचेंगे तो जीव समुदाय बचेगा। पेड़ रहेंगे तो लकड़ी की आवश्यकता की पूर्ति होगी और उद्योगों को कच्चा माल मिलता रहेगा। हमारी आगामी पीढ़ी को पेड़ों के अभाव में कठिनाइयों का सामना नहीं करना पड़ेगा। पेड़ और वन होंगे तो वन्य-जीवन को आश्रय मिलता रहेगा। दुर्लभ वन्य प्राणियों को विलुप्त होने से बचाया जा सकेगा। इसलिए सब लोगों को पेड़ लगाने का संकल्प लेना चाहिए। लोगों को वन महोत्सव और वृक्षारोपण के अभियान में सक्रिय भागीदारी करनी चाहिए। सरकार उन तत्वों से सख्ती से निबटे जो वृक्षों और वनों की अंधाधुंध कटाई में संलिप्त हैं।
Thakur rahul raghuwanshi
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